बीमारी दिनों दिन बच्चों के लिए घातक साबित हो रही है
दोस्तों बच्चों में कम नींद के कारण मानसिक तनाव बढ़ रह है यह बीमारी दिनों दिन बच्चों के लिए घातक साबित हो रही है एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कम नींद से हमारे देश के बच्चे काफी तनाव में रहते हैं जिससे उनकी याददाश्त शक्ति में काफी प्रभाव पड़ता है और उनके खेलने कूदने के दिन चर्या में परिवर्तन और चिड़चिड़ापन रहता है
अक्सर आपने देखा होगा कभी कबार बच्चे स्कूल जाते हैं और अपना टिप्पन भी अच्छी तरह नहीं खा पाते और कभी कबार बच्चों में अक्षर देखा गया है कि वह क्लास रूम मैं ही सो जाते हैं तो दोस्तों आप अपने बच्चों को भी समय दिया करो यदि आप समय पर इस समस्या का समाधान नहीं करोगे तो आपके बच्चों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा
दोस्तों वर्तमान में इन कारणों से बच्चों में यह समस्या बढ़ रही है
स्कूल का समय और पढ़ाई का बोझ भी बच्चों की नींद को प्रभावित कर रहा है जो लोग अभी भी वर्क फोरम होम कर रहे हैं उनके ऑफिस संबंधित काम ऑफिस से जुड़े फोन कॉल्स देर सवेरे काम करने की आदत आदि के चलते घर में बच्चे सहित दूसरे सदस्यों की भी नींद और दिनचरिया में प्रभावित पढ़ रह है
बच्चों की याददाश्त शक्ति में कैसे असर पड़ता है?
जब बच्चे समय पर अपनी नींद पूरी नहीं कर पते तो उनमे अन्येक प्रकार की समस्या उत्पन होती है उनको जब स्कूल भेजते है उस समय स्कूल जाना नहीं चाहते यदि वह स्कूल जाते भी है तो पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते आहार सही से ग्रहण नहीं कर पाते छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं इससे बच्चों में एकेडमी परफॉर्मेंस घट जाता है अगर एक शब्द में कहा जाए तो उनकी शारीरिक मानसिक और सामाजिक स्तर भी घट जाता है
बच्चों में कम नींद के कारण क्या?
★दिन में मोबाइल फोन व टीवी अधिक देखना
यह भी एक कारण है बच्चों को रात में डरावने सपने आने के बाद भी वह अपनी नींद पूरी नहीं कर पाते
परिवार में किसी भी प्रकार का झगड़ा या पारिवारिक समस्या से बच्चों की नींद प्रभावित होती है
यदि बच्चे जिस कमरे में सोते हैं उसका वातावरण अधिक या तो गर्म या ठंडा हो इस दिक्कत के कारण भी बच्चे संपूर्ण नींद नहीं ले पाते
मक्खी मच्छर काटने पर भी बच्चे कम नींद ले पाते हैं
सोने से पहले अत्यधिक एनर्जी ड्रिंक का सेवन करते हैं उन बच्चों को भी इसका प्रभाव पड़ता है
यह बीमारी होती है बच्चो में घातक
कम नींद के दुष्प्रभाव
जिन बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पाती उन में अलग-अलग प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कि
अधिकांश बच्चों में देखा गया है कि उनकी नींद पूरी न होने के कारण उनमें चुस्ती होती है या वह चिड़चिड़ापन करते हैं समय पर खाना नहीं खाते एक तनाव का माहौल क्रिएट करते हैं किस प्रकार के लक्षण अधिकांश बच्चों में देखेंगे
यदि दोस्तों आप अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दोगे तो उन पर शारीरिक रूप से तो प्रभाव पड़ेगा ही साथ ही साथ यह प्रभाव उसको स्कूल में भी उठाना पड़ेगा समय पर अपने बच्चों का स्वास्थ्य पर ध्यान दें
अब जानिए बच्चों की उम्र के अनुसार नींद होनी चाहिए यह इस प्रकार है
यदि कोई नवजात शिशु है 1 माह का तो लेनी चाहिए यदि नवजात की उम्र डेढ़ महीने से लेकर 1 साल तक की है तो उसे लेनी चाहिए यदि बच्चे की उम्र 1 साल से ढाई साल तक है तो उसे घंटे लेनी चाहिए यदि बच्चे की उम्र 22 साल से 5 साल तक है तो उसे घंटे लेनी चाहिए यदि बच्चे की उम्र 6 साल से 12 साल तक है तो उसे घंटे लेनी चाहिए यदि बच्चे की उम्र 13 साल से 18 साल तक की है तो घंटी लेनी चाहिए
यदि आप इस समस्या से छुटकारा पाना चाहते हो तो निम्न प्रकार के कार्य आप कर सकते हो यह इस प्रकार है सबसे पहले अपने बच्चों का सोने का उठने का समय निर्धारित करें यदि आपके बच्चे दिन में सोना चाहते हैं तो भी उनको सोने का माहौल दे बच्चों को इनडोर गेम से आउटडोर गेम की ओर ले जाए बच्चों को ताजा फल सब्जी व पौष्टिक आहार ही खिलाएं बच्चों को दिन में खूब पानी पिलाई लेकिन ध्यान रखिए शाम के समय पुणे अधिक पानी ना पिलाए अन्यथा शाम को बार-बार उनको पेशाब के लिए जाना पड़ेगा बच्चों को अपने घर के कामों में ज्यादा काम ना करने दें चोको रात में कहानियां सुनाएं जिससे उनको नींद अच्छी आएगी
यह कार्य करने से बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेंगे यह इस प्रकार है
बच्चे समय पर उठेंगे समय पर खाना खाएंगे और दिन भर ताज की सा महसूस करेंगे इससे उनको शारीरिक व मानसिक तनाव को दूर करने की क्षमता भी मिलेगी और वह खूब पढ़ेंगे और चिड़चिड़ापन भी नहीं करेंगे
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